Thursday 09/ 10/ 2025 

Prof. Chetan Singh Solanki’s column – Climate change is here and now, wake up before it’s too late | प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम: जलवायु परिवर्तन यहीं और अभी है, देर होने से पहले जागेंबिहार चुनाव नतीजों के साथ क्या खत्म हो जाएगी नीतीश-लालू जैसे नेताओं की विरासत? – Bihar elections will decide legacy of Nitish kumar and Lalu prasad yadav opns2Rajat Sharma's Blog | 26/11 के बाद अमेरिका के सामने सरेंडर करने के लिए किसने कहा?Brahma Chellaney’s column: The Nobel Committee will not be swayed by Trump | ब्रह्मा चेलानी का कॉलम: ट्रम्प के बहकावे में नहीं आने वाली है नोबेल समितिबिग बॉस में तान्या मित्तल की अमीरी का बखान… फेक रिच सिंड्रोम है या ‘चालाकी’? मनोवैज्ञान‍िक पक्ष समझ‍िए – Big boss Tanya mittal fake rich syndrome brand image practice psychology ntcpmmऑपरेशन सिंदूर के बाद जैश-ए-मोहम्मद की नई चाल, अब महिलाओं की ब्रिगेड बना रहा, जानिए कहां तक फैला है नेटवर्कRuchir Sharma’s column: The world is starting to consider AI a magic wand | रुचिर शर्मा का कॉलम: एआई को जादू की छड़ी मानने लगी है दुनियाकरवा चौथ की शॉपिंग के लिए बेस्ट हैं ये 5 बाजार, सस्ते में मिलेगा सामानसुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग का हलफनामा, कहा- जल्द शुरू होगी पूरे देश में SIR कराने की प्रक्रियाPt. Vijayshankar Mehta’s column – A person who possesses three types of intelligence is a good leader. | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: तीन प्रकार की ‘इंटेलिजेंस’ जिसमें हो, वो ही अच्छा लीडर
देश

Navneet Gurjar’s column – Opposition surrounded by its own questions | नवनीत गुर्जर का कॉलम: अपने ही सवालों में घिरा हुआ विपक्ष

3 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
नवनीत गुर्जर - Dainik Bhaskar

नवनीत गुर्जर

लगभग तीन महीने से हवा में तैर रहे सवालों के जवाब मिल गए। पहलगाम के। ऑपरेशन सिंदूर के और इन दोनों से जुड़े अन्य मामलों के भी। हालांकि भारत को कितना और क्या नुकसान हुआ, जैसे कुछ सवाल अनुत्तरित ही रहे और दलगत राजनीति से ऊपर उठें और केवल देश के लिए सोचा जाए तो ऐसे सवाल अनुत्तरित ही रहने चाहिए। सरकारों के पास कुछ तो गोपनीय रहना ही चाहिए।

जैसा प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जो लोग, जो दल सरकार में रह चुके हैं, उन्हें व्यवस्थाओं के बारे में सब पता है। इसके बावजूद जो और जिस तरह के सवाल पूछे जा रहे हैं, वे कुछ हद तक बचकाने ही कहे जाएंगे। बहरहाल, विपक्ष के पास अब बिहार की मतदाता सूची के अलावा कोई प्रश्न नहीं बचा है।

हालांकि पिछले ग्यारह सालों में विपक्ष के पास कई मुद्दे आए, कई ऐसे विवाद आए, जिन पर वह सरकार को घेर सकता था। बाकायदा सबूत देकर सरकार के खिलाफ डंका बजा सकता था लेकिन उसने कुछ नहीं किया। कह सकते हैं कि सत्ता पक्ष इतना मजबूत है या उसकी राजनीति इतनी पक्की है कि विपक्ष की इतने वर्षों में एक नहीं चली।

सही है, स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष होना चाहिए, लेकिन उसमें उतनी ही मजबूत समझदारी, परिपक्वता भी होनी चाहिए ताकि वह देशहित के मामलों में सत्ता पक्ष या सरकार का सकारात्मक सहयोग कर सके और दिशा भटकने पर सरकार के खिलाफ खड़ा होकर सही दिशा भी बता सके। ग्यारह वर्षों में तमाम विपक्षी पार्टियों ने शायद ही ऐसा कुछ किया हो!

चुनाव चाहे हरियाणा का हो, या महाराष्ट्र का, वोटिंग मशीनों के खिलाफ विपक्ष सिर्फ चिल्लाता रहा है। कोई सबूत आज तक पेश नहीं कर सका। न जनता के सामने। न सुप्रीम कोर्ट के सामने। कभी कहा हरियाणा में कुछ वोटिंग मशीनों में बैटरी का परसेंटेज कम, कुछ में नब्बे से भी ज्यादा कैसे?

तो कभी कहा महाराष्ट्र में एक प्रत्याशी को अपना ही वोट नहीं मिला, यह कैसे संभव है? लेकिन इन सब बातों का कोई पुख्ता सबूत विपक्ष कभी नहीं दे पाया। महाराष्ट्र के मामले में तो चुनाव आयोग सिद्ध भी कर चुका कि उस प्रत्याशी को वोट मिले थे और यह वोटिंग मशीन से भी साबित हो चुका।

इस तरह के आरोपों पर जब सत्ता पक्ष सवाल करता है कि विपक्ष जीतता है तब वोटिंग मशीनें शुद्ध और अच्छी कैसे हो जाती हैं? तो विपक्ष के पास कोई जवाब नहीं होता। ऐसे में उसके अपने सवाल भी लोगों को हास्यास्पद लगने लगते हैं।

जहां तक बिहार का मामला है, यहां मतदाता सूची का पुनरीक्षण किया जा रहा है। चुनाव आयोग कह रहा है कि उसकी पद्धति शुद्ध और निष्पक्ष है। हो सकता है व्यवस्था की खामियां यहां भी हों! जिन लोगों को मतदाता के डिटेल्स कलेक्ट करने का जिम्मा सौंपा गया है वे इसमें तरह-तरह की कोताही बरत रहे हों। लेकिन चुनाव आयोग का कहना है कि इस सूची में कोई भी खामी रहती है तो सभी दलों को यह सौंपी जाती है।

यहां तक कि आम आदमी से भी आपत्ति मंगाई जाती है। कोई भी व्यक्ति पुख्ता सबूत देकर इस सूची में सही नाम जुड़वा सकता है और गलत नाम हटवा भी सकता है। फिर दिक्कत क्या है? कोई तो बताए? दरअसल एक पक्ष यानी जो पार्टियां सत्ता में नहीं हैं, उनका कहना है कि बहुत से नाम काटे जा रहे हैं। बहुत लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित करने की साजिश की जा रही है। दूसरी तरफ सत्ता पक्ष का कहना है कि अगर फर्जी वोटरों, रोहिंग्याओं, बांग्लादेशियों के नाम काटे जा रहे हैं तो इसमें गलत क्या है?

आखिर देश या किसी राज्य की सरकार चुनने के लिए वोटर तो उस राज्य या देश का ही होना चाहिए! जो देश के नागरिक ही नहीं हों, उन्हें वोट देने का अधिकार क्यों मिलना चाहिए? मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो उसने कह दिया कि अगर बड़ी संख्या में वोटरों के नाम काटे जाते हैं, तो हम हस्तक्षेप करेंगे।

बात यह भी समझ में नहीं आई। वोट अगर कटे और सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया भी तो फिर होगा क्या? क्योंकि इतना समय ही नहीं बचेगा कि पूरी प्रक्रिया दोहराई जा सके या इतने ज्यादा या इतनी बड़ी मात्रा में करेक्शंस किए जा सकें।

राजनीतिक विपक्ष मजबूत भी हो और जिम्मेदार भी… स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष होना चाहिए, पर उसमें उतनी ही परिपक्वता भी हो कि वह देशहित के मामलों में सरकार का सकारात्मक सहयोग कर सके और दिशा भटकने पर सरकार के खिलाफ खड़ा हो सके।

बहरहाल, सवाल-दर-सवाल जारी हैं और समाधान की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। देखना यह है कि चुनाव आयोग अपनी शुद्धता या निष्पक्षता कैसे साबित करता है और इन सवालों के जाल से किस परिपक्वता के साथ बाहर निकल पाता है।

खबरें और भी हैं…

Source link

Check Also
Close



DEWATOGEL