Abhay Kumar Dubey’s column- Rahul wants to bring OBC votes towards Congress | अभय कुमार दुबे का कॉलम: ओबीसी वोटों को कांग्रेस की तरफ लाना चाहते हैं राहुल

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6 घंटे पहले
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अभय कुमार दुबे, लेखक सीएसडीएस और अम्बेडकर विवि, दिल्ली में प्रोफेसर रह चुके हैं
चुनावी राजनीति में हर पार्टी के पास बुनियादी जनाधार के रूप में एक शुरुआती पूंजी होती है। भाजपा को वैसे तो समाज के सभी तबकों के कुछ न कुछ वोट मिलते हैं, लेकिन ऊंची जातियों के वोटर उसका बुनियादी जनाधार हैं। सपा और राजद को यादव और मुसलमान वोटरों पर टिकी पार्टियों के तौर पर देखा जाता है।
बसपा जाटव समाज के समर्थन पर टिकी है। जगनमोहन रेड्डी की पार्टी मुख्य तौर पर रेड्डियों, चंद्रबाबू नायडू की पार्टी कम्माओं और देवगौड़ा की पार्टी वोक्कलिगाओं की मानी जाती है। चुनावी प्रतियोगिता की प्रकृति कुछ ऐसी है कि वह किसी पार्टी को अपना बुनियादी जनाधार बदलने की गुंजाइश नहीं देती। इसलिए यह देखकर आश्चर्य होता है कि राहुुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस अपने बुनियादी जनाधार में बड़ा संशोधन करने की कोशिश करते दिख रही है।
राहुल कांग्रेस को ओबीसी मतदाताओं के लिए आकर्षक बनाना चाहते हैं। प्रश्न यह है कि क्या हमें इसमें कांग्रेस की एक राजनीतिक विडम्बना देखनी चाहिए? या क्या इसे एक दूरगामी परिप्रेक्ष्य वाली रणनीति के तौर पर देखा जा सकता है? यहीं इस रणनीति के एक और पक्ष से जुड़ा सवाल पूछना जरूरी है। क्या कांग्रेस ओबीसी वोट खुद अपने लिए चाहती है, या वह भाजपा को ओबीसी वोट मिलने से रोकने के लिए सामाजिक न्याय का नारा बुलंद कर रही है?
भारतीय राजनीति पर अपने वर्चस्व के लंबे दौर में कांग्रेस ने उत्तर और मध्य भारत में ओबीसी वोटों की कोई खास परवाह कभी नहीं की। एक तरह से वह समाज के इस बहुसंख्यक तबके को गैर-कांग्रेसी पार्टियों की गोलबंदी के लिए साठ के दशक से ही छोड़ती रही है।
हम जानते हैं कि इस दशक में जब राममनोहर लोहिया यूपी और बिहार में यादव समाज को अपनी ओर खींच रहे थे और दूसरी तरफ दीनदयाल उपाध्याय लोदी और काछी समाज के लिए जनसंघ को आकर्षक बनाने के प्रयास कर रहे थे, उस समय भी कांग्रेस विपक्ष की इस योजना को नाकाम करने की कोई कोशिश करती हुई नहीं दिखाई दे रही थी।
कांग्रेस का काम दलित (हरिजन), मुसलमान और ऊंची जातियों के वोटरों से बखूबी चल रहा था। चुनाव-दर-चुनाव वह इस आधार पर खड़े होकर 40% से ज्यादा वोटों की गोलबंदी करने में कामयाब थी। जैसे-जैसे राजनीति का कारवां आगे बढ़ा, जनता दल के गर्भ से कई ओबीसी-प्रधान दलों ने जन्म लिया और विभिन्न प्रदेशों की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने लगे।
लंबे अरसे तक सत्ता में रहने के बाद जब इन दलों के ग्राफ में गिरावट आई तो इसका लाभ भाजपा को मिला, जो ओबीसी वोटों को ऊंची जातियों के अपने जनाधार से जोड़ने के विचारधारात्मक परिप्रेक्ष्य के साथ राजनीति कर रही थी।
2014 में जब भाजपा को पहली बार स्पष्ट बहुमत मिला, तो उसमें ओबीसी-प्रधान पार्टियों की गिरावट और भाजपा की तरफ गए ओबीसी वोटों की निर्णायक भूमिका रही। लगता है कि कांग्रेस ने राहुल के नेतृत्व में पहली बार भाजपा के उत्थान से जुड़े इस पहलू को समझने की कोशिश की है। जातिगत जनगणना और ओबीसी पर फोकस इसी का परिणाम है।
राहुल जानते हैं उत्तर और मध्य भारत में ओबीसी वोटों की मुख्य दावेदार पार्टियां इंडिया गठबंधन में उनकी पार्टनर हैं। वे इन पार्टियों से न तो ओबीसी वोट छीन सकते हैं, और न ही छीनना चाहते हैं। जहां ये पार्टियां नहीं हैं, वहां कांग्रेस स्वयं ओबीसी वोटरों की दावेदार है और आगे भी बन सकती है। कर्नाटक ऐसा ही प्रांत है।
वहां कांग्रेस अहिंदा रणनीति पर चलती है जो ओबीसी-प्रधान है। गुजरात में कांग्रेस माधवसिंह सोलंकी के जमाने से ही क्षत्रिय कहे जाने वाले ओबीसी वोटरों की गोलबंदी करती रही है। लेकिन राहुल जानते हैं कि अगर वे उत्तर और मध्य भारत में भाजपा की झोली से ओबीसी वोटरों को पूरी तरह या आंशिक रूप से अलग करने में कामयाब हो जाएं, तो सपा और राजद जैसे उनके पार्टनर भाजपा को हरा सकते हैं। इससे कांग्रेस को भी लाभ हो सकता है।
लोकसभा चुनाव में यूपी के मतदाता इस तरह के परिणाम की एक बानगी दिखा चुके हैं। दरअसल, कांग्रेस भाजपा के मुख्य प्रभाव-क्षेत्र में दिखाना चाहती है कि भाजपा ओबीसी वोट तो लेती है, लेकिन बदले में इन समुदायों को दिया गया उसका आश्वासन पूरा नहीं किया जाता।
भाजपा को सत्ता में 11 वर्ष पूरे हो चुके हैं, इसलिए कांग्रेस को लगता है कि ओबीसी समुदाय हिंदुत्व के तहत सत्ता और सशक्तीकरण में अपनी साझेदारी के प्रति संदेहों से दो-चार हो रहे होंगे। अगर राहुल का यह आकलन सही है तो उनकी रणनीति अगले तीन-चार साल में राजनीति का खेल पलट सकती है।
भाजपा के प्रभुत्व में ओबीसी-प्रधान पार्टियों की गिरावट और भाजपा की तरफ गए ओबीसी वोटों की बड़ी भूमिका रही है। राहुल ने भाजपा के उत्थान से जुड़े इस पहलू को समझकर रणनीति बनाने की कोशिश की है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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