Wednesday 19/ 11/ 2025 

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N. Raghuraman’s column: How rich are you and what does true wealth mean? | एन. रघुरामन का कॉलम: आप कितने धनवान हो और असली अमीरी के मायने क्या हैं?

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12 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

ब्रिटेन में अमीर होने के लिए सही में आज क्या चाहिए? लंदन में एक मीडिया हाउस ने हाल ही में लगभग 4 हजार करदाताओं पर किए वेल्थ सर्वे में यह सवाल पूछा और उनके जवाब चौंकाने वाले थे। छह अंकों की तनख्वाह कमाने के बाद भी उनमें से करीब 90% लोग खुद को अमीर नहीं मानते।

सात अंकों की नकद बचत होने पर भी करीब 83% लोग खुद को धनवान नहीं मानते। बिना मॉर्गेज वाला घर होने के बावजूद 93% लोगों की सोच भी यही थी। दिलचस्प यह है कि उनमें से अधिकतर का मानना था कि अकेले परिवार की कमाई किसी को अमीर बनाने के लिए पर्याप्त नहीं।

कई लोगों ने बताया कि वे साल में सिर्फ एक छुट्टी लेते हैं। गाड़ी भी बार-बार नहीं बदलते। उनमें से एक अपना किचन अपडेट करना चाह रहा था, लेकिन नया बनवाने के बजाय उसे रिपेयरिंग और पेन्टिंग से ही संतोष करना पड़ा।

सर्वे में शामिल ऊंची कमाई वाले पैरेंट्स ने कहा कि वे भी भारी स्कूल फीस, मॉर्गेज की ब्याज दरों, करों के बोझ और बढ़ती लिविंग कॉस्ट से जूझ रहे हैं। सर्वे पर कमेंट करते हुए कुछ वेल्थ मैनेजरों ने इस भावना को सही ठहराया।

उनका कहना है कि इतनी मोटी तनख्वाह के बावजूद महंगाई उनके टेक-होम वेतन पर भारी पड़ती है। उनको कई त्याग करने पड़ते हैं। मसलन, पुरानी कार में ही घूमना, ताकि बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेज सकें। इसीलिए उन्हें ऐसा नहीं लगता कि उनके पास ढेर सारा कैश है।

लेकिन वे सब मानते हैं कि असली अमीरी तो एक अच्छी-खासी विरासत में है। सर्वे में 61 प्रतिशत का मानना था कि दौलत मेहनत के बजाय विरासत में मिलती है। 49 प्रतिशत सोचते हैं कि ये किस्मत की बात है कि उनको ‘मम्मी-डैडी के बैंक से क्या मिलता है।’ सर्वे में सामने आया कि युवाओं में यह सोच बढ़ रही है।

इस हफ्ते यह सर्वे मुझे तब याद आया, जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक सख्त आदेश में एक बेटे को अपनी मां की जिम्मेदारी उठाने के निर्देश दिए। 76 साल की दिव्यांग बुजुर्ग मोहिनी पुरी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोर्ट ने आदेश दिया कि उनका पुत्र अमित पुरी अदालत की पूर्व अनुमति के बगैर मोहिनी की सम्पत्ति से कोई लेनदेन नहीं कर पाएगा।

यह मामला कोर्ट तब पहुंचा, जब होली फैमिली अस्पताल ने 5 नवंबर को याचिका दायर की। बेटे द्वारा मोहिनी को घर ले जाने से इनकार के बाद अस्पताल ने मामला सुलझाने के लिए कई जगह कोशिश की। इसी साल 24 अगस्त को गिरने और बोलने में परेशानी के बाद मोहिनी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

4 अक्टूबर को उन्हें डिस्चार्ज के लिए फिट घोषित किया गया। लेकिन अमित ने उन्हें घर ले जाने से मना कर दिया। अस्पताल के वातावरण में रहते हुए उन्हें इन्फेक्शन हो गया। कोर्ट ने अक्टूबर 2025 में दर्ज तीन शिकायतों पर पुलिस को तत्काल कानूनी कार्रवाई का आदेश दिया।

अनुपालन रिपोर्ट के लिए केस को 24 नवंबर को सूचीबद्ध किया गया है। कोर्ट ने अपने आदेश से मोहिनी के बेटे और समाज को संकेत दिया है कि वह करीबी से निगरानी कर रहा है, ताकि बुजुर्गों की देखभाल सुनिश्चित हो सके।

विरासत के लिए ऐसी जल्दबाजी और व्यवहार दौलत को लेकर ‘पीढ़ियों के बीच गंभीर अलगाव’ को उजागर करता है। आज के युवा भी वैसे ही आर्थिक हालात झेल रहे हैं, जो कई पीढ़ियां झेल चुकी हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि युवाओं में चिंताजनक निराशा और निर्भरता देखी जा रही है, जो हमारी अर्थव्यवस्था और भविष्य में उनकी खुद की सफलता के लिए सही नहीं है।

फंडा यह है कि हमारे समाज में असली अमीरी तो तब है, जब हमारे बुजुर्ग माता-पिता अपने पोपले मुंह से पड़ोसियों से बातचीत करते हुए खिलखिलाते रहें। मुझे पक्का भरोसा है कि देवी महालक्ष्मी ऐसे घरों में सदा के लिए निवास करती हैं और वही घर धनवान समझे जाते हैं। आपका क्या कहना है?

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